श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र चक्रवर्ती : परिचय
- जन्म 1810 शकाब्द बांग्ला 1295 साल 30 भद्र, ताल नवमी तिथि ईस्वी सन 1888, 14 सितंबर शुक्रवार प्रात 7:05 सक्रांति दिन।
- स्थान - हिमायतपुर गांव पावना जिला आधुनिक बांग्लादेश।
- पिता श्री शिवचंद्र चक्रवर्ती, शाणि्डल्य गोत्रीय, लाहिड़ी राढी बंदोपाध्याय कुंवारी वंशीय , पूर्वी बंगाल के पावना जिला के चटमोहर पोस्ट ऑफिस के गुआखाड़ा ग्रामवासी। उनका विवाह पावना के हिमायतपुर ग्राम के जमींदार कश्यप गोत्रय श्री रामेंद्र नारायण भादुड़ी चौधरी की कन्या परम श्रीमनमोहनी देवी के साथ बांग्ला 1286 साल में हुआ था।
- माता श्री मनमोहिनी देवी राधा स्वामी संप्रदाय आगरा के परम गुरु श्री हुजूर महाराज ने उनकी व्यथित प्रार्थना पर स्वप्न में उनको सतनाम की दीक्षा दी थी।
श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र:
- जन्म काल में रोए नहीं थी मुस्कुराने थे।
- शिशु अनुकूल ने एक बार वैध की विषयुक्त गोलियों को हजम कर लिया था ।कुछ नहीं हुआ।
- सभी समय हाथ में एक लठी रहती।
- 3 वर्ष की अवस्था में मुंह से जो भी वीणी निकलती थी, फलित होती थी।
- बांग्ला 1300 साल में सूर्य कुमार शास्त्री एवं भगवान चंद्र शिरोमणि ने श्रीश्री ठाकुर के हाथ में खड़ी खल्ली देकर अक्षर आरंभ कराया। कृष्ण चंद्र वैरागी की पाठशाला में उनकी पढ़ाई प्रारंभ हुई।
- बांग्ला 1305 साल में पावना विश्वविद्यालय में अष्टम श्रेणी में पहुंचे। फिर पावना जिला स्कूल रायपुर हाई स्कूल, उच्च अंग्रेजी विद्यालय में अध्ययन किया।
- शैशवावस्था में दयालबाग आगरा स्थित राधा स्वामी संप्रदाय के तत्कालीन सदगुरु श्री श्री सरकार साहेब के निर्देश से माता मनमोहनी देवी ने राधास्वामी सतनाम से दीक्षित कराया।
- श्री श्री ठाकुर ने इस बात को सुन कर कहा था कि यह मंत्र तो वे मातृ गर्भकाल से ही जाप करते थे।
- बीच-बीच में अद्भुत ज्योति दर्शन से मूर्छित होते थे। श्री महाकाली श्री कृष्ण इत्यादि देवी देवताओं से दर्शन होता था।
- 17 वर्ष की अवस्था में श्री श्री षोडशीबाला देवी के साथ पाणिग्रहण हुआ।
- गरीबी परोपकरता एवं और वैज्ञानिक पठन-पाठन व्यवस्था के कारण मैट्रिक परीक्षा में बैठ नहीं सके, पर 1317 --18 साल में कोलकाता के बहू बाजार स्थित सरत माल्लिक के नेशनल मेडिकल स्कूल में मौखिक रूप से परीक्षा देकर भर्ती हुए।
- गरीबी के कारण ग्रे स्टीट के कोयले गोदाम मै या सियालदह प्लेटफार्म पर हितवादी पत्रिका को बिछाकर सोते थे। लैंम्पोस्ट की रोशनी पढ़ाई चलती थी। अनाहार ,पादुकाशून्य, प्रतिदिन 12-12 मील पादचारण के कारण अध्ययन पूर्ण नहीं कर सके । गांव लोट गये। कुछ दिन डॉक्टरी की प्रैक्टिस की। साथ साथ साथ तुमुल वेग से नाम- ध्यान एक कीर्तन भी चलता रहता था ।
- 1321-22 साल (बंगला),14 जून 1914 को कीर्तन करते-करते देह चेतना शून्य हो गई और मुंह से ब्रह्मतत्व की बातें निकलने लगी जिससे उनके कीर्तन सदस्यों ने नोट किया। इस तरह 72 दिनों की भाव समाधि अवस्था की वणीयों को नोट कर 1325 साल बंगाल में पुण्यपुंथि के नाम से प्रकाशित किया ।अंतिम भावसमाधि 24 ज्येष्ठ 1325 साल बंगाल को हुई थी।
- श्री श्री ठाकुर किसी भी अलौकिक घटना को अमान्य करते थे वे कारणमुखी थे किंतु उनके द्वारा अभूतपूर्व अलौकिक घटनाएं घटित होने लगी थी। 1913 से 14 ईसवी से ठाकुर के प्रेमलिंगन की सुगंध फैलने लगी और श्री अनंतनाथ, डॉक्टर किशोरी मोहन, सतीशचंद्र गोस्वामी, दुर्गानाथ सान्याल, मुकुंद घोष, सतीशचंद्र जोयादर , अश्विनी कुमार विश्वास, प्रफुल्ल राय, सुशील बसु इत्यादि अनेक विभिन्न क्षेत्रों के नामी ग्रामी व्यक्ति उनके पास जुट गए हैं। .....to be continued
- Short biography of Sri Sri Thakur Ji
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