शरीर तभी व्याधि की खान बन जाता है | जब विहित करणीयों की अवज्ञा कर समय को लुप्त करके वृत्ति-बेहोश आलस्य प्रश्रय पाता है, और यह आलस्य ही तभी सर्वक्षण उपच उठाता है मरण-दुन्दुभि लेकर विनाश पुकारता है-आओ। -#श्रीश्रीठाकुर (शाश्वती) यूट्यूब चैनल से जुड़ने के लिए इस लिंक पर जाए https://youtube.com/c/SATASNGDEOGHAR
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श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र चक्रवर्ती : परिचय जन्म 1810 शकाब्द बांग्ला 1295 साल 30 भद्र, ताल नवमी तिथि ईस्वी सन 1888, 14 सितंबर शुक्रवार प्रात 7:05 सक्रांति दिन। स्थान - हिमायतपुर गांव पावना जिला आधुनिक बांग्लादेश। पिता श्री शिवचंद्र चक्रवर्ती, शाणि्डल्य गोत्रीय, लाहिड़ी राढी बंदोपाध्याय कुंवारी वंशीय , पूर्वी बंगाल के पावना जिला के चटमोहर पोस्ट ऑफिस के गुआखाड़ा ग्रामवासी। उनका विवाह पावना के हिमायतपुर ग्राम के जमींदार कश्यप गोत्रय श्री रामेंद्र नारायण भादुड़ी चौधरी की कन्या परम श्रीमनमोहनी देवी के साथ बांग्ला 1286 साल में हुआ था। माता श्री मनमोहिनी देवी राधा स्वामी संप्रदाय आगरा के परम गुरु श्री हुजूर महाराज ने उनकी व्यथित प्रार्थना पर स्वप्न में उनको सतनाम की दीक्षा दी थी। श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र: जन्म काल में रोए नहीं थी मुस्कुराने थे। शिशु अनुकूल ने एक बार वैध की विषयुक्त गोलियों को हजम कर लिया था ।कुछ नहीं हुआ। सभी समय हाथ में एक लठी रहती। 3 वर्ष की अवस्था में मुंह से जो भी वीणी निकलती थी, फलित होती थी। बांग्ला 1300 साल में सूर्य कुमार शास
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प्रसंग: सत्यानुसरण थोड़ी सी भी दुर्बलता रहने पर तुम ठीक-ठीक अकपट नहीं हो सकोगे पर जब तक तुम्हारे मन मुख में एक नहीं होते जब तक तुम्हारे अंदर की मलिनता दूर नहीं होगी। श्री श्री पितृ देव सप्तर्षि को चर्चा करने का आदेश देते हैं । सप्तर्षि - दुर्बलता रहने पर और कपट नहीं बन पाऊंगा और अकपट होने का अर्थ है - चिंतन और कथन एक जैसा होना। श्री श्री पितृ देव- चिंतन और कथन एक जैसा होने पर दुर्बलता नहीं रहती है चिंतन और कथन एक जैसा होना दुर्बलता दूर होने का मेन फेक्टर है। जय गुरु। Buy Gift Cards
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जानिए क्यों श्री श्री ठाकुर जी ने यह कहा की इसके बदले में मेरी बलि दे |Sri Sri Thakur Anukul Chandra
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